मंगलवार, 15 सितंबर 2009

महेमान बन के वो

जाने कहाँ से आया था महेमान बन के वो।

रहने लगा था दिल में भी पहचान बनके वो।

वो आया जैसे मेरा मुकद्दर सँवर गया।

मेरा तो रंग रुप ही मानो निख़र गया।

करने लगा था राज भी सुलतान बन के वो।


वो जानता था उसकी दीवानी हुं बन गई।

उसके क़्दम से मानो सयानी सी बन गई।

ख़्वाबों में जैसे छाया था अरमान बनके वो।

हरवक़्त बातें करने की आदत सी पड गई।

उस के लिये तो सारे जहां से मैं लड गई।

एक दिन कहाँ चला गया अन्जान बनके वो।

कहते हैं “राज़” प्यार, वफ़ा का है दुजा नाम।

ईस पे तो जान देते हैं आशिक वही तमाम।

उस रासते चला है जो परवान बन के वो।

बुधवार, 2 सितंबर 2009

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

भविष्य सुधारने के लिए आप क्या हैं? सपने देखते हैं और उसे साकार करने की कोशिशें करते हैं। सपने साकार हुए तो अच्छा और टूट गये तो .....? डर यहीं होता है, घबराहट यहीं होती है। इलाहाबाद में मेरे एक मित्र श्री सतीश श्रीवास्तव ने सुझाया है कि भविष्य संवारने के सिलसिले में मैं अपने ब्लाग पर गोपाल दास नीरज की उस कविता को पूरा का पूरा रखूं, जिसमें उन्होंने फरमाया है कि कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है, चंद खिलौने के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। सो, मित्र की बातों पर अमल करते हुए कवि व गीतकार नीरज की रचना मैं यहां ऱखता हूं। इस आशा के साथ कि मेरे मित्र की बातें सही साबित हों और भविष्य संवारने की दिशा में जुटे लोगों में इससे कुछ आशाओं का संचार हो पाये। यह कविता (और शायद भावनाएं भी ) साथी कौशल किशोर शुक्ला के ब्लॉग से मेरे एक अन्य साथी भूपेश जी ने मार ली थी। उनके ब्लॉग से मैंने झटक लिया। इस उम्मीद के साथ की वह मेरी भावनाओं को समझेंगे।

छिप-छिप अश्रु बहाने वालो
मोती व्यर्थ लुटाने वालो
कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया
हुआ आंख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालो
डूबे बिना नहाने वालो
कुछ पानी के बह जाने से
सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या
हैखुद ही हल हो गयी समस्या
आंसू गर नीलाम हुए तो समझो
पूरी हुई तपस्या
रुठे दिवस मनाने वालो
फटी कमीज सिलाने वालो
कुछ दीयों के बुझ जाने से
आंगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहां पर
केवल जिल्द बदलती
पोथी जैसे रात उतार
चांदनी पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालो
चाल बदलकर जाने वालो
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नहीं मरा करता है।