जाने कहाँ से आया था महेमान बन के वो।
रहने लगा था दिल में भी पहचान बनके वो।
वो आया जैसे मेरा मुकद्दर सँवर गया।
मेरा तो रंग रुप ही मानो निख़र गया।
करने लगा था राज भी सुलतान बन के वो।
वो जानता था उसकी दीवानी हुं बन गई।
उसके क़्दम से मानो सयानी सी बन गई।
ख़्वाबों में जैसे छाया था अरमान बनके वो।
हरवक़्त बातें करने की आदत सी पड गई।
उस के लिये तो सारे जहां से मैं लड गई।
एक दिन कहाँ चला गया अन्जान बनके वो।
कहते हैं “राज़” प्यार, वफ़ा का है दुजा नाम।
ईस पे तो जान देते हैं आशिक वही तमाम।
उस रासते चला है जो परवान बन के वो।
बिहार में शिक्षा की दुरवस्था के बहाने
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शिक्षा की बिगड़ती स्थिति पर चर्चा सामाजिक पतन के संदर्भ में ही हो सकती है।
तीस-चालीस साल पहले हम शिक्षा को अगर बेहतर स्थिति में पाते हैं तो उसके कारण
भी हैं...