बुधवार, 24 मार्च 2010

पहचान

यह कुत्ते की दुम हैं
हर जरूरत के वक्त पर
आप इन्हें खोजेंगे मगर नहीं पाएंगे
यह गर सामने पड़ भी गए तो
आंख बचाकर धीरे से निकल जाएंगे
हां, अगर मजबूरी में सामना हो भी गया तो यह
हाथ जोड़ेंगे, दांत भी निपोरेंगे
आप अवाक सिर्फ इन्हें देखेंगे
और देखते ही रह जाएंगे क्योंकि
इनकी फरेबी अदाओं के जाल पर
बनाई गई बेचारगी और हाल पर
आप कुछ सोच नहीं पाएंगे
अपनी दिखावटी बातों से
इतनी मेहरबानियां बरसाएंगे
पल में आपके खयालात
बदल जाएंगे
बदलाव भी इतना ज्यादा होगा कि
इनकी सज्जनता के सामने
अन्य लोग बौने नजर आएंगे
यहां तक कि अपने ‘खास’के बारे में भी
बदल जाएगा नजरिया
वे सब बेवफा समझ में आएंगे
महसूस ऐसा होगा मानों
अब तक इनके बारे में बनाई गई धारणाएं
विचार और सुनी कथाएं
सब सिर्फ बकवास थीं
हकीकत में यह औरों से भी भले लोग हैं
बिचारे हैं , सबमें प्यारे हैं
आफत में भी हमारे हैं
मायावी रूप का ऐसा चलेगा जादू
विचार शून्य हो आप भूल जाएंगे
जो दिखा वह सिर्फ दिखावा था
हकीकत ऐसी हो नहीं सकती
क्यों कि यही सच है
की दुम कभी सीधी हो नहीं सकती.
परिवर्तन
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हम जब उनसे पहली बार मिले थे
वह इस तरह चहके थे मानों
पतझड़ में ही ढेरों फूल खिले थे
मेरी हर बात उनके लिए
गीता के श्लोक और कुरान की आयतें थीं
मिलता था तो मानों रेगिस्तान में
हो गई हो बारिश, भीग जाता था तन-मन
हम अपनी हते थे वह अपनी सुनाते थे
दोनों ए दूसरे के सुख-दुख में
हाथ बंटाते थे
सोचा था यह सिलसिला चलेगा अनंत
जब भी दुखों की पड़ेगी काली छाया
औषधि बन उनके दो मीठे बोल
कर देंगे उसका अंत
मगर क्या मालूम था क़ी वह हमारा भ्रम था
क्योंकि उन्हें फूलों से प्रेम तो था मगर
सिर्फ उन भौंरों और तितलियों की मानिंद
जिनका काम है सिर्फ रस लेना और भूल जाना
सचमुच उनका भी आचरण अब कुछ ऐसा ही है
सब कुछ इतना बदल गया यकीन नहीं होता
शर्म आती है कहने और बताने में
क्योंकि अब तो उनका ईमान भी पैसा ही है
माना बदलाव प्रकृति का नियम है
मगर परिवर्तन इतनी तेजी से आएगा
आदमी, आदमी को भूल जाएगा
तो भला इस धरती पर कौन
इंसान नजर आएगा।