गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह..

रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....

मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह....

ख्वाहिश थी कि चख लूँ दो घूँट प्यार के
तेरे लफ्ज़ दहके सदा अंगार की तरह.....

अब रूठा-रूठी का न हमसे खेल खेलिए
जज़्बात ढह चुके मेरे दीवार की तरह.....

लम्बी हो उम्र तेरी, दुआ तेरे लिए की
अब जी रही है "चाँदनी" मज़ार की तरह...

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

सोमवार, 9 अगस्त 2010

दर्द गढ़वाली की ग़ज़लें

उसके करम की बातें करो।
तुम मतलए-गम की बातें करो॥
जी तो चाहता है बस आठों पहर।
बस मेरे सनम की बातें करो॥
समंदर का पानी सूखने लगा है।
फिर किसी चश्मे-नम की बातें करो॥
कुफ्रो-दीं के हम नहीं काइल।
मैकदे-ओ-हरम की बातें करो॥
टूट जाएगा भरम रहने दो दर्द।
क्यों उसके सितम की बातें करो॥

दोस्त नहीं हरजाई है।
बस जिस्मो का शैदाई है॥
शाम ढले गुम हो जाएगी।
यह तो इक परछाई है॥
वो अंदर कुछ बाहर कुछ है।
वह दोस्त नहीं तमाशाही है॥
राहे वफा में चलो संभल कर।
यहां आगे कुंआ पीछे खाई है॥
जो सच बोला सूली पर लटका।
ऐ दोस्त यही सच्चाई है॥
तू सच को सच कह देता है।
दर्द तुझमें यही बुराई है॥

ज़ख्म फिर गहरे मिले।
फिर वही चेहरे मिले॥
वक्त आगे बढ़ चला।
लोग वहीं ठहरे मिले॥
राहबर का भेष धरके।
रास्ते में लुटेरे मिले॥
बाग सारे उजड़ गए।
दूर तक सहरे मिले॥
इश्क था बंधक बना।
प्यार पे पहरे मिले॥
दर्द कौन किसका सुने।
सब यहां बहरे मिले॥

जिन्दगी का लंबा सफर अच्छा लगा।
हर पल मौत का डर अच्छा लगा॥
तेरे शहर में तेरे करम की खातिर।
भटकना रात भर अच्छा लगा॥
हम तो समझे थे कि भूल गए होंगे।
आपने ली खैरो-खबर अच्छा लगा॥
हमने भी जानबूझकर खाए फरेब।
वो बेवफा सही पर अच्छा लगा॥
घूंघट उठाया और फिर गिरा दिया।
यह अंदाज मोतबर अच्छा लगा॥
दिन भर घूमना दीवानों की तरह।
शाम को लौटना घर अच्छा लगा॥
भरी महफिल से उठ के चल दिए दर्द।
फिर देखना मुड़-मुड़ कर अच्छा लगा॥

भरा है सफर सब्र कर सब्र कर।
कभी तो होगी आसान डगर सब्र कर सब्र कर॥
इन्हीं अंधेरों से निकलेंगे उजाले एक दिन।
इस शाम की भी होगी सहर सब्र कर सब्र कर॥
क्या हुआ जो वो साथ छोड़ गया बीच सफर।
कौन देता है साथ उम्र भर सब्र कर सब्र कर॥
इस सितम की आखिर कोई तो इन्तिहा होगी।
कब तक होगा जुल्मो-जबर सब्र कर सब्र कर॥
गम न कर दर्द अभी अच्छे दिन भी आएंगे।
ये इम्तिहां की घड़ी है न डर सब्र कर सब्र कर॥

उनके सामने कोई उलझन रखना।
हो सके तो खिलखिलाता बचपन रखना॥
इक न इक दिन लौट आएगा परदेसी।
बचा के अपनी आंखों में सावन रखना॥
शौक से बसाना है घर में आशियां लेकिन।
बच्चों के खेलने को आंगन रखना॥
खुदा के लिए मत भरना मौत का खौफ।
बच्चों के रंगीं सपनों में जीवन रखना॥
गली-गली में घूम रहे हवस के भेड़िए।
महफूज अपनी बेटियों का दामन रखना॥
कितने पाक दामन है पता चल जाएगा।
दर्द जरा इनके सामने भी दरपन रखना॥

दौर में दिमागे-ज़हीन भी रखना।
किसी न किसी को मुतमईन भी रखना॥
छूना शौक से बुलंदियां आसमानों की।
पर अपने पांव के नीचे जमीन भी रखना॥
कदम-कदम पे मिलेंगे यहां आस्तीनों के सांप।
इन पर काबू पाने को बीन भी रखना॥
इक दिन आएगा इन्कलाब जरूर।
नया शहर बसाने को जमीन भी रखना॥
दोस्तों के भेष में घूम रहे हैं दुश्मन।
ऐसे हालात में जरूरी है संगीन भी रखना॥
चलाओ शांति वार्ताओं के दौर मगर।
बंदूक के साथ मैगजीन भी रखना॥
सफर में काम आएंगी दर्द मां की दुआएं।
भरोसा करना और यकीन भी रखना॥

जख्मों को दवा दी उसने।
दर्द की अच्छी दवा दी उसने॥
मुझे अंधेरों के हवाले करके।
रौशनी गैरों पे लुटा दी उसने॥
कत्ल के बाद मेरे पछताया।
खुद को ये कैसी सजा दी उसने॥
जाने ये कैसी अदा है मोजीजा।
जीने की वजह बता दी उसने॥
हर कोई मेरा हो गया दुश्मन।
राज की बात बता दी उसने॥
होश में आना अब हुआ मुश्किल।
दर्द ये कैसी दुआ दी उसने॥


में मरने चला था मुझको बचाने को आ गया।
वो मेरी नाव पार लगाने को आ गया॥
मौसमे बहार में रहा वो जाने कहां-कहां।
वक्ते रुख्सत एहसान जताने को आ गया॥
मैं जिंदा था जब तो न लगाया गले मुझे।
मय्यत पे मेरी अब आंसू बहाने को आ गया॥
आंखें लगी ही थीं कि ख्वाबों में आ गया।
कम्बख्त फिर मुझे सताने को आ गया॥
दिन भर बैठे रहे दर्द पारसाओं के बीच।
फुरसत मिली तो शाम को मैखाने को आ गया॥

बुधवार, 24 मार्च 2010

पहचान

यह कुत्ते की दुम हैं
हर जरूरत के वक्त पर
आप इन्हें खोजेंगे मगर नहीं पाएंगे
यह गर सामने पड़ भी गए तो
आंख बचाकर धीरे से निकल जाएंगे
हां, अगर मजबूरी में सामना हो भी गया तो यह
हाथ जोड़ेंगे, दांत भी निपोरेंगे
आप अवाक सिर्फ इन्हें देखेंगे
और देखते ही रह जाएंगे क्योंकि
इनकी फरेबी अदाओं के जाल पर
बनाई गई बेचारगी और हाल पर
आप कुछ सोच नहीं पाएंगे
अपनी दिखावटी बातों से
इतनी मेहरबानियां बरसाएंगे
पल में आपके खयालात
बदल जाएंगे
बदलाव भी इतना ज्यादा होगा कि
इनकी सज्जनता के सामने
अन्य लोग बौने नजर आएंगे
यहां तक कि अपने ‘खास’के बारे में भी
बदल जाएगा नजरिया
वे सब बेवफा समझ में आएंगे
महसूस ऐसा होगा मानों
अब तक इनके बारे में बनाई गई धारणाएं
विचार और सुनी कथाएं
सब सिर्फ बकवास थीं
हकीकत में यह औरों से भी भले लोग हैं
बिचारे हैं , सबमें प्यारे हैं
आफत में भी हमारे हैं
मायावी रूप का ऐसा चलेगा जादू
विचार शून्य हो आप भूल जाएंगे
जो दिखा वह सिर्फ दिखावा था
हकीकत ऐसी हो नहीं सकती
क्यों कि यही सच है
की दुम कभी सीधी हो नहीं सकती.
परिवर्तन
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हम जब उनसे पहली बार मिले थे
वह इस तरह चहके थे मानों
पतझड़ में ही ढेरों फूल खिले थे
मेरी हर बात उनके लिए
गीता के श्लोक और कुरान की आयतें थीं
मिलता था तो मानों रेगिस्तान में
हो गई हो बारिश, भीग जाता था तन-मन
हम अपनी हते थे वह अपनी सुनाते थे
दोनों ए दूसरे के सुख-दुख में
हाथ बंटाते थे
सोचा था यह सिलसिला चलेगा अनंत
जब भी दुखों की पड़ेगी काली छाया
औषधि बन उनके दो मीठे बोल
कर देंगे उसका अंत
मगर क्या मालूम था क़ी वह हमारा भ्रम था
क्योंकि उन्हें फूलों से प्रेम तो था मगर
सिर्फ उन भौंरों और तितलियों की मानिंद
जिनका काम है सिर्फ रस लेना और भूल जाना
सचमुच उनका भी आचरण अब कुछ ऐसा ही है
सब कुछ इतना बदल गया यकीन नहीं होता
शर्म आती है कहने और बताने में
क्योंकि अब तो उनका ईमान भी पैसा ही है
माना बदलाव प्रकृति का नियम है
मगर परिवर्तन इतनी तेजी से आएगा
आदमी, आदमी को भूल जाएगा
तो भला इस धरती पर कौन
इंसान नजर आएगा।